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राकेश झुनझुनवाला शेयर मार्किट के बारे में क्या बोलते हैं,आइये जानते हैं उन्ही से।

बिग बुल राकेश झुनझुनवाला का कहना है कि आने वाले वर्षों में एसआईपी की सुनामी आने वाली है। उन्हें लगता है कि अर्थव्यवस्था में तेजी का दौर शुरू हो चुका है। रेयर एंटरप्राइजेज के पार्टनर राकेश झुनझुनवाला ने ईटी नाउ के निकुंज डालमिया को दिए इंटरव्यू में बताया कि पिछले पांच वर्षों में भारत की जितनी ग्रोथ रही है, अगले 10 साल में देश उससे तेज ग्रोथ रहेगी।



1. केंद्र में अगली सरकार किसकी बनेगी? शेयर बाजार को लेकर आप क्या सोच रहे हैं?

हर नए म्यूचुअल फंड के साथ बाजार में निवेशक आ रहे हैं। हम इसका स्वागत करते हैं। अगर बाजार में अधिक पैसा आता है तो इसका मतलब यह है कि हमारे शेयरों में तेजी आएगी। मुझे अभी भी लगता है कि केंद्र में अगली सरकार एनडीए की बनेगी। मेरा मानना है कि बीजेपी को अपने दम पर बहुमत नहीं मिलेगा, लेकिन उसका दबदबा बना रहेगा। मुझे नहीं लगता कि सरकार बनाने के लिए एनडीए से बाहर के दलों से समर्थन की जरूरत पड़ेगी। 

इसके साथ मैं यह भी कहना चाहूंगा कि भारत में किसी भी सरकार हो, उससे बहुत फर्क नहीं पड़ता। आज सेंसेक्स-निफ्टी नए शिखर पर हैं, लेकिन सारे बार खाली हैं। कहीं पार्टी नहीं हो रही है। इसे लेकर दो नजरिये सामने आए हैं। पहला, अगर इसका कोई जश्न नहीं मना रहा है तो इसका मतलब यह है कि इस तेजी का फायदा बहुत ज्यादा लोगों को नहीं मिला है। अगर पार्टिसिपेशन नहीं होता तो यह ट्रेंड जारी रहेगा। दूसरा, कुछ शेयरों की वजह से बाजार नए शिखर पर पहुंचा है। यह द्वंद्व की स्थिति है। 


मुझे लगता है कि अभी शेयर बाजार में आक्रामक ढंग से निवेश नहीं करना चाहिए, लेकिन मैं इससे पहले देश पर कभी इतना बुलिश भी नहीं रहा हूं। अगले 10 साल में भारत की ग्रोथ पिछले पांच साल की ग्रोथ से तेज रहेगी। उसकी वजह यह है कि एनपीए यानी बैड लोन की समस्या हल हो चुकी है। कैपिटल इन्वेस्टमेंट का दौर शुरू होने वाला है। मैं खुद भी द्वंद्व में उलझा हूं। मैं लोकसभा चुनाव के नतीजे आने तक आक्रामक ढंग से निवेश नहीं करना चाहता। अगर कुछ अप्रत्याशित होता है तो बाजार में 5 पर्सेंट या 10 पर्सेंट तक की गिरावट आ सकदती है, लेकिन यह बात भी सच है कि मैं इतना बुलिश कभी नहीं था। मैं बुल हूं। शायद इसीलिए मुझे लोग बिग बुल कहते हैं। बुल हमेशा बिग यानी बड़े ही होते हैं। 


2. जीएसटी, नोटबंदी या IL&FS क्राइसिस, वजह चाहे जो भी हो, यह बात भी सही है कि इंडिया इंक की प्रॉफिट ग्रोथ में एक साथ रिकवरी नहीं हुई है। क्या आपको लगता है कि आगे कंपनियों की प्रॉफिट ग्रोथ तेज होगी, भले ही प्रधानमंत्री कोई बने? 


मुझे लगता है कि बैंकों की खराब हालत की वजह से कंपनियों की प्रॉफिट ग्रोथ नहीं बढ़ रही है। कभी-कभी एक कंपनी, मिसाल के लिए टाटा मोटर्स (जेएलआर की वजह से) के चलते निफ्टी की अर्निंग काफी कम दिखती है। मुझे नहीं पता कि कंपनियों की प्रॉफिट ग्रोथ में कब रिकवरी होगी। यह उसी तरह से है, जैसे जब मैं डैडी से कहता था कि पैसे दे दो, तो वह कहते थे कि सब आपका ही तो है। तब मैं उनसे पूछता था कि अगर सब मेरा ही पैसा है तो यह मुझे कब मिलेगा? मैं इंडेक्स लेवल पर प्रॉफिट ग्रोथ नहीं देखता। मैं कंपनियों के स्तर पर इसे देखता हूं। यकीन मानिए कि मैं कभी अपने जीवन में इतना बुलिश नहीं था, लेकिन मैं अगले महीने को लेकर सावधान भी हूं। अगर इलेक्शन के रिजल्ट के बाद बाजार में गिरावट आती है तो वह निवेश का मौका होगा। मेरे पास अभी बिल्कुल पैसा नहीं है, इसलिए मैं और शेयर नहीं खरीद सकता। शायद इसी वजह से मैं सावधानी बरत रहा हूं।


3. मैं कई वर्षों से आपसे बात कर रहा हूं। आपने इस दौरान हमेशा कहा है कि आप बुलिश हैं। पहली बार आप कह रहे हैं कि आप बहुत ज्यादा बुलिश हैं। इसका क्या मतलब है? 

मैं अगले पांच-सात साल के लिए बुलिश होने की बात कर रहा हूं। भारतीय अर्थव्यवस्था में रिकवरी हो रही है। कैपिटल एक्सपेंडिचर में मुझे भारी बढ़ोतरी की उम्मीद है। आप यह भी देखिए कि आज समाज में क्या हो रहा है? लोग ईमानदारी से कानून का पालन कर रहे हैं और वे तरक्की कर रहे हैं। देश में ईमानदारी बढ़ रही है और सुशासन दिख रहा है। हमें यह नहीं पता कि इसका कितना पॉजिटिव असर होगा। यह बदलाव स्थायी है। अगर बैड लोन की समस्या के चलते चार-पांच साल तक हमारी ग्रोथ सुस्त रहती है और कैपिटल एक्सपेंडिचर में बढ़ोतरी नहीं होती तो कोई बात नहीं है। आज मैं दुनिया की एक बड़ी ऐड एजेंसी के चेयरमैन से बात कर रहा था। उन्होंने निवेश बढ़ाने के लिए दुनिया में भारत को चुना है। 

इसलिए देश में विदेशी निवेश बढ़ेगा और यह ऊंचे बेस से होगा। भारत में कंज्यूमर डेट टु जीडीपी रेशियो 10-11 पर्सेंट है। भारत में कंज्यूमर डेट जीडीपी का 125 पर्सेंट है, जो चीन में 300 पर्सेंट के लेवल पर पहुंच गया है। मैं आरबीआई गवर्नर से सहमत हूं कि ब्याज दरों में कटौती की जाए, निवेश किया जाए और फिर देखा जाए कि महंगाई दर का क्या होता है। हमें रोड बनाने दीजिए, पुल बनाने दीजिए, हमें ब्याज दरों की चिंता नहीं करनी चाहिए। जो पैसा लाना चाहते हैं, उसे बोलिए कि आइए और लगाइए। 2002-2003 में जैसी फीलिंग आज मुझे हो रही है। उस वक्त स्ट्रक्चरल और सेक्युलर बुल मार्केट था। इस बार शेयरों का वैल्यूएशन 2002-03 से काफी अधिक है। इसलिए मैं इकनॉमी पर बुलिश हूं। 


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