प्रमुख मेटल कंपनियों की वर्तमान आंकड़े बताते हैं कि साल 2019 में उनकी कमाई का दौर परवान चढ़ चुका है. मार्च तिमाही में शीर्ष सात मेटल कंपनियों का मुनाफा लगातार सातवीं तिमाही में भी घटा. मेटल की कीमतों में गिरावट इसकी प्रमुख वजह रही है।
इसके अलावा वैश्विक स्तर पर मेटल की कमजोर मांग और अमेरिका व चीन के बीच बढ़ते ट्रेड वॉर के तनाव ने भी मेटल कंपनियों की कमाई पर दबाव बनाया है. माना जा रहा है कि ये कारण आगे भी अपना प्रभाव डालते रहेंगे।
देश की प्रमुख आठ मेटल कंपनियों का एबिड्टा 8 से 28 फीसदी घटा है. इसमें JSW स्टील, हिंडाल्को, वेदांता, हिंदुस्तान जिंक, SAIL, टाटा स्टील और जिंदल स्टेनलेस के नाम शामिल हैं. कम कमाई और अधिक कर्ज ने इन कंपनियों पर काफी दबाव बनाया हुआ है।
सेल और जिंदल स्टेनलेस जैसी कंपनियों का डेट-एबिड्टा अनुपात 5 गुना तक पहुंच गया है, जो काफी संवेदनशील है. इसे ध्यान में रखते हुए यदि इन शेयरों में तेजी आती है, तो इसे निकासी का अच्छा अवसर मानते हुए इनकी बिकवाली करना ही बेहतर होगा।
भारतीय मेटल कंपनियों की कमाई स्टील, एल्युमिनियम और जिंक की कीमतों पर निर्धारित रहती है. 2018 के निचले स्तरों से लंबी छलांग के बावजूद स्टील की कीमतें पिछले साल के शिखर से 15 फीसदी कम हैं. विश्लेषकों का मानना है कि सस्ते आयात और ट्रेड वॉर के चलते स्टील कीमतों पर दबाव बना रहेगा।
टाटा स्टील, JSW स्टील, सेल और जिंदल स्टील के शेयरों पर भी इन्हीं वजहों का दबाव नजर आ रहा है. इससे आने वाली तिमाही में भी उनका मुनाफा घट सकता है. LME एल्युमिनियम कीमतें दो साल के निचले स्तरों पर हैं. यह खबर वेदांता और हिंडाल्को के लिए अच्छी नहीं है।
IDFC सिक्योरिटीज के आशीष केजरीवाल ने कहा, "ऑटो, इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे सेक्टरों में सुस्ती के चलते घरेलू मांग घटी है.आयात घट रहा है और कीमतों पर दबाव है. घरेलू उत्पादकों को कच्चे तेल का उत्पादन बढ़ाना होगा ताकि लागत को घटाया जा सके, मगर मौजूदा बाजार बढ़ी कीमतों को सहन नहीं कर सकता।"
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इसके अलावा वैश्विक स्तर पर मेटल की कमजोर मांग और अमेरिका व चीन के बीच बढ़ते ट्रेड वॉर के तनाव ने भी मेटल कंपनियों की कमाई पर दबाव बनाया है. माना जा रहा है कि ये कारण आगे भी अपना प्रभाव डालते रहेंगे।
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भारतीय मेटल कंपनियों की कमाई स्टील, एल्युमिनियम और जिंक की कीमतों पर निर्धारित रहती है. 2018 के निचले स्तरों से लंबी छलांग के बावजूद स्टील की कीमतें पिछले साल के शिखर से 15 फीसदी कम हैं. विश्लेषकों का मानना है कि सस्ते आयात और ट्रेड वॉर के चलते स्टील कीमतों पर दबाव बना रहेगा।
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